वासुदेव शरण अग्रवाल के जीवन परिचय

    वासुदेव शरण अग्रवाल के जीवन परिचय

वासुदेव शरण अग्रवाल एक मनोहारी साहित्यकार थे।
ये भारतीय संस्कृति पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान रहे।इन विसयों को लालित्य ,पूर्ण एवं परिमार्जित भाषा तथा उत्कृष्ट कर उन्होंने हिंदी साहित्य की महान सेवा की है। उनका निबंध साहित्यक भी हिंदी साहित्य की अमूल्य  निधि के रूप में माना जाता है।
                
वासुदेव शरण अग्रवाल


                            जीवन परिचय

पुरातत्व और भारतीय संस्कृति के अमर विख्याता वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म 1904 ई0 में लखनऊ के प्रतिश्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। आपका बाल्यकाल लखनऊ में ही व्यतीत हुआ ।बचपन में उनकी बुद्धि की प्रखरता अध्यन के क्षेत्र में सहायक सिद्ध हुई। इसलिए इन्होंने अपनी अल्प आयु में ही काशी विस्व विद्यालय में BAऔर लखनऊ से MA,   PHD की उपाधि प्राप्त की ।इनको अध्यन और पुरातत्व में विशेष रूचि के कारण ही काशी विस्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद का कार्यभार सौप दिया गया।   बाद में आचार्य  पद पर  आसीन  हुए। बहुत समय तक ये मथुरा  तथा  लखनऊ  के संग्रहालय में रहे । माँ सरस्वती का यह अमर सपूत  हिंदी  साहित्य का सेवा करता हुआ सन 1968 ई0 में माँ भारती के चरणों में हमेशा के लिए सो गया।



     वासुदेव शरण अग्रवाल के रचनाये व् कृतियां

निबंधों का संग्रह-  पृथ्वी पुत्र ,  कल्पबृक्ष ,कल्पलता
मातृ भूमि,  भारत की एकता ,  वेद विद्या,  कला और संस्कृति , वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति इत्यादि।
ऐतिहासिक व् पौराणिक निबंध - महापुरुष श्रीकृष्ण ,महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
आलोचना- पद्मावत की संजीविनी व्याख्या हर्ष चरित का संस्कृति अध्यन 
शोध ग्रन्थ- नविन कालीन भारत।

     वासुदेवशरण अग्रवाल के साहित्यिक परिचय

वासुदेवशरण अग्रवाल ने कविता लेखन से अपना साहित्यिक जीवन सुरु करके अपने रचनाओं  में  योग्यता ,
अनुभव बुद्धि की  अवधारणाएं , असाधारण प्रतिमा द्वारा भारतीय संस्कृत और राज्यकता अमित चित्रों  को चित्रित करते हुए अनुसन्धान की तीव्र प्रकृति का भी स्पष्टयता समावेश कर दिया। आप विचार शील और प्रतिभावान लेखक थे। अग्रवाल लखनऊ में पुरातत्व संग्रहालय में निरीक्षक , केंद्रीय पुरात्तव विभाग के संचालक और राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष रहे।
  आपने साहित्यिक जीवन में  साहित्य के साथ साथ पुरातत्व को भी अपने अध्ययन का विषय बनाया ।
 अग्रवाल जी भाषा और साहित्य के प्रकांड विद्वान रहे।
उन्होंने  अनेक पत्रिकाओ को निबंध लिखकर गौरवपुर्ण
स्थान प्राप्त किये । इनके लेख अनुसन्धान पूर्ण तथा उनमे भारतीय संस्कृति की गहरी  छाप मिलती है। आपने  भारतीय संस्कृति के विभिन उत्कृष्ट निबंध लिखे है।
        ये केवल गद्य प्रेमी और काव्य प्रेमी भी थे किंतु काव्य के क्षेत्र में उन्होंने कोई भी पुस्तक पृथक रूप में लिखी है। उन्होंने जो कुछ भी लिखा है गद्य में ही लिखा है। 
गद्य निबंधों की एक मूल्यवान परम्परा का उन्होंने प्रारंभ किया था।

       वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली

 भाषा गत शैली-    डॉ0 अग्रवाल ने प्रकृति संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओ का गहन अध्ययन किये थे। अतः उनकी भाषा में पांडित्य की स्पष्ट छाप है। उनकी भाषा सुद्ध परिमार्जित कड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रतिस्वकझता होने पर भी भाषा में दुष्टता और क्लिष्टता नहीं है। आपने भाषा की सरलता की सर्वोच्च ध्यान दिया है।

आपकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी सब्दों तथा मुहावरों तथा कहावतों का अभाव है। कहीं कहीं दर्शन और पुरातत्व के विषयों का विवेचन करते समय अप्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। आपने भाषा को व्यवहारिक बनाये रखने का निरंतर प्रयास किया है । इस प्रकार उनकी भाषा ,उनके विचारों का प्रतिनिधित्व करती है।



शैली गत विशेषताएं- अग्रवाल जी एक अध्ययनशील चिंतक, विवेकशील विचारक , सहृदय साहित्यकार थे। जिनकी निबंधों में इनकी गंभी व्यक्तितत्व की छाप दिखाई देती है। इनके वचन प्रामाणिक होते हैं। उनमे सर्वत्र आत्मविस्वास की झलक दिखाई पड़ती है। अग्रवाल जी ने सामान्यतः विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है। जिनमे निम्न विशेषताएं पायी जाती है.........




  1. सामयिकता--    इनकी मौलिक रचनाओं में संस्कृत की सामासिक शैली का प्रयोग हुआ है जिसमे वाक्य लंबे लंबे होते  है।
  2. व्याख्यात्मक - इनकी व्याख्यानों में प्रास शैली का प्रयोग हुआ है जिनमे वाक्य अपेक्षाकृत छोटे और भाषा बढ़ती सी हुई है।
  3. भावात्मक - एक सहृदय लेखक होने के कारण इनके निबंधों में भाव और भावात्मकता  पायी जाती है। इस प्रकार की शैली में भाषा माधुर्य  गुड़ से युक्त , सरल , तथा  व्यवहारिक पायी जाती है। इस प्रकार की शैली में छोटे छोटे वाक्य होते हैं।
  4. गवेषणात्मक शैली ---अग्रवाल जी ने प्राचीन अनुसन्धान और पुरातत्व से सम्बंधित रचनाओं में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किये हैं। इसमें मौलिकता विद्यमान है। इस शैली की भाषा  गंभीर होते हुए भी कम क्लिष्ट हैं। इसमें वाक्य कही कही लंबे हैं। फिर भी प्रवाह और माधुर्य निरंतर विद्यमान है।
  5. उद्धरणों का प्रयोग-  अग्रवाल जी ने अपने निबंधों में प्रमाणिकता लाने  के लिए तथा अपने कथन की पुष्टि के लिए उद्धरणों का प्रयोग किया है। उनके उद्धरण प्रायः संस्कृत साहित्य से लिए गए होते हैं ।

                      साहित्य में स्थान

अग्रवाल जी मनीषी साहित्यकार और उच्चकोटि के निबंधकार थे। आपके संस्कृति और पुरातात्विक रचनाये हिंदी साहित्य का गौरवपूर्ण है। भारतीय संस्कृति के अन्वेषी साहित्यकार के रूप में आपका नाम हिंदी साहित्य में स्मरणीय रहेगा।





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